औरंगाबाद(लाइव इंडिया न्यूज 18 ब्यूरो)। पुरातन काल की वर्ण व्यवस्था में वर्ण की श्रेष्ठता स्थापित करने को लेकर तलवारें खींच जाती थी और कई लोग असमय काल के गाल में समा जाते थे। समाज में कुछ जातियों को अछूत माना जाता था और उन्हे सवर्ण जाति से अलग रहकर अपनी व्यवस्था बनाने को मजबूर होना पड़ता था। उन्हे न तो मंदिर में प्रवेश की अनुमति थी और न ही उन्हे कुओं से पानी पीने की इजाजत थी।
धीरे धीरे समय बदला और समाज सुधारकों द्वारा भेदभाव समाप्त करने की कोशिश की गई। कोशिशे रंग भी लाई लेकिन आज के आधुनिक युग में भी यदा-कदा अस्पृश्यता और छुआछूत के मामले सामने आ ही जाते है। ऐसे मामले आधुनिक युग में भी माहौल खराब किया करते है। हाल के कुछ साल में पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के मंदिर में प्रवेश के बाद मंदिर को धुलाने का मामला भी सुर्खियों में रहा था। ऐसी ही घटनाएं यह ईशारा कर रही है आधुनिक युग के बावजूद आज भी व्यवस्थाएं कई जगह नहीं बदली। समाज में छिपे तौर पर व्याप्त छुआछूत की भावना को औरंगाबाद के माली थाना के औसान गांव ने चुनौती देकर देश और दुनिया के सामने एक मिसाल प्रस्तुत की है।
गांव में चल रहे एक यज्ञ में भेदभाव के लिए कही कोई जगह नही दी गई। यहां प्रेम से अछूत माने जाने वाले लोगों को स्थान दिया गया और अछूत यज्ञ में मुख्य यजमान बनकर हवन-पूजन करने में जुटे हुए है। कथित रूप से अछूत कहे जाने वाले दलित समाज से आनेवाले सरयू रविदास से जब बात की गई तो उन्होंने कहा कि यज्ञ कराने बाहर से आए पुरोहित राकेश पांडेय जी महाराज ने उन्हे इजाजत दी और सम्मान के साथ हवन एवं पूजा करने का अवसर दिया। बाबाजी ने उन्हे दिल से गले लगाकर सामाजिक समरसता का उदाहरण पेश किया है। वें बाबाजी के प्रति हृदय से सम्मान और आभार प्रकट करते है।