औरंगाबाद(लाइव इंडिया न्यूज 18 ब्यूरो)। औरंगाबाद में नियमों की अनदेखी कर सरकारी कार्यालयों में काॅमर्शियल की जगह प्राइवेट नंबर की गाड़ियां धड़ल्ले से चल रही है। इसे लेकर यह बड़ा सवाल उठ रहा है कि परिवहन विभाग इस मामले में क्यों कार्रवाई नही कर रहा है?
हालांकि सरकार ने वाहनों के परिचालन एवं उसके रखरखाव की कानूनी परख को देखने के लिए ही परिवहन विभाग बनाया है। इस विभाग का यह दायित्व है कि अपने कार्यालय क्षेत्र के अधीन निजी एवं व्यावसायिक गाड़ियों के द्वारा परिवहन के नियमों का यदि कही उल्लंघन हो रहा है, तो उसकी जांच करे और उल्लंघन पाए जाने पर जुर्माना करे लेकिन परिवहन विभाग के नियम सिर्फ और सिर्फ आम लोगों के लिए हो कर रह गए हैं।
आम लोग सजा भी भुगत रहे है और जुर्माना भी भर रहे है लेकिन औरंगाबाद जिले में इन नियमों की जमकर धज्जियां उड़ाई जा रही है। नियमों की धज्जियां वही उड़ा रहे हैं जिनपर परिवहन नियमों का निर्वहन करने की जिम्मेवारी है। औरंगाबाद जिला समाहरणालय परिसर में प्रतिदिन दर्जनों प्रशासनिक अधिकारियों की वाहने लगती है।
सभी वाहन निजी है लेकिन उनका काॅमर्शियल उपयोग धड़ल्ले हो रहा है लेकिन किसी भी वाहन में काॅमर्शियल नंबर नहीं है। यानी इन अधिकारियों के द्वारा प्रति माह सरकार के परिवहन विभाग को लाखों रुपए का चूना लगाया जा रहा है। इतना ही नहीं अधिकारी तो दूर सरकार के मंत्री एवं आईजी तक परिवहन विभाग के नियमों का अनुपालन नहीं कर रहे है और उनके वाहनों पर भी काॅमर्शियल नंबर नहीं दिख रहे हैं।
शहर के प्रसिद्ध आरटीआई एक्टिविस्ट बबुआ सिंह का कहना है कि इस मामले में उनके द्वारा वर्ष 2016 से ही सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी जा रही है। इतना ही नहीं इस मामले में जिले के दो दो जिलाधिकारी का एवं लोक शिकायत न्यायालय से भी आदेश निर्गत हुए है कि सरकारी दफ्तरों में उपयोग में आने वाली गाड़ियां काॅमर्शियल टैक्स का भुगतान करे और काॅमर्शियल नंबर का उपयोग करे लेकिन कोई कार्रवाई नही हुई और वह आदेश अब फाइलों की शोभा बढ़ा रहा है।
वही इस संबंध में जब जिला परिवहन पदाधिकारी बालमुकुंद प्रसाद से बात की गई तो उन्होंने तोता की भांति रटी रटाई बात कही कि सभी विभाग को पत्र भेजा गया है और निजी वाहन जिनका काॅमर्शियल उपयोग हो रहा है, उन वाहनों में व्यावसायिक नंबर प्लेट का उपयोग करते हुए व्यावसायिक कर चुकाई जाए। उन्होंने आशा व्यक्त की है कि शीघ्र ही सभी व्यवस्था सुधर जाएंगी।
कह तो दिया साहब ने मगर कहते वक्त न जाने कैमरे पर क्यों हकलाने लगे इसका पता नही। गौरतलब है कि डीटीओ साहब ने तो जरूर कह दिया की शीघ्र ही सभी व्यवस्था में सुधार की जाएगी मगर यह कब तक हो पाता है, इसका अंदाजा नहीं है। क्योंकि दो-दो जिलाधिकारी आये भी आदेश भी निकला और चले भी गए मगर अधिकारियों की गाड़ी प्राइवेट नंबर से काॅमर्शियल नहीं हो सका।
इससे बखूबी अंदाजा लगाया जा सकता है कि आगे क्या होने वाला है। सिर्फ नियम आम लोगों के लिए ही होता है। सरकारी बाबुओं के लिए नहीं।