Republic Day Special : अंग्रेजी हुकूमत के दुश्मन थे राजा नारायण सिंह

राजा नारायण सिंह पवई गढ़ के जमींदार राजा थे ।यह पवई गाँव आज भी है । आज यह गाँव युवाओं में झुंझुनुआ पहाड़ के लिये प्रसिद्ध है। इस पहाड़ के पत्थरों को ठोकने से झुंझुन की आवाज आती है। इसी झुंझुनुआ पहाड़ी के नीचे बिहार के औरंगाबाद जिला मुख्यालय से चंद मील दूर गौरवशाली इतिहास को समेटे आज भी विकास की राह जोहता पवई रियासत है। यहीं प्रसिद्ध पवईगढ़ था जिसकी स्थापना पृथ्वीराज चौहान के वंशज द्वारा तेरहवीं शताब्दी में किया गया था। इस रियासत में 2800 गाँव थे।

राजा नारायण सिंह पवई रियासत

राजा नारायण सिंह अपनी बहादुरी के कारण पवई रियासत के साथ ही अन्य रियासतों में भी लोकप्रिय थे। इस रियासत की कचहरी औरंगाबाद जिला मुख्यालय के शाहपुर मुहल्ले में थी । आज भी इस स्थान को देखा जा सकता है।अंग्रेजी हुकूमत ने 1764 में मेहंदी हुसैन को इस कचहरी पर कब्जा करने को भेजा था। युवावस्था में राजा नारायण सिंह का खून खौल उठा,और उन्होंने मेंहदी हसन को पराजित कर शाहपुर स्थित कचहरी को पुनः अपने अधिकार में किया।

राजा नारायण सिंह के मित्र बनारस के राजा चेत सिंह थे । राजा चेत सिंह भी अंग्रेजों के खिलाफ थे। उन्होंने भी अंग्रेजों को लगान देना बंद कर अंग्रेजों के विरुद्ध बगावत का ऐलान कर दिया। इस बगावत को कुचलने के लिए अंग्रेजों ने बंगाल से एक विशाल फौज बनारस के लिए भेजा। औरंगाबाद पहुँचने के बाद अंग्रेजी सेना रुक गयी। क्योंकि सोन नदी लबालब थी। इसे पार करने की व्यवस्था के लिए राजा नारायण सिंह आगे आये। उन्होंने अंग्रेजों को सुरक्षित उस पार पहुचाने का भरोसा दिया । लेकिन छापामारी में निपुण राजा जी ने मल्लाहों को निर्देश दिया और देखते-देखते सैकडों अंग्रेजी सैनिकों को नदी में डूबा कर मार डाला गया। कैमूर की पहाड़ियों पर निरंतर चलने वाले युद्धों में भी राजा जी के हाथों सैकड़ो अंग्रेज सैनिक मारे गए।

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राजा नारायण सिंह बहादुर के साथ अत्यंत उदार भी थे। जब भी अंग्रेजों को मालगुजारी देने की बात आती ,राजाजी गरीब जनता के साथ खड़े रहते। रियासत की जनता उनके एक इशारे पर उठ खड़ी होती। जब अंग्रेजों ने शाहमल को राजाजी के पास मालगुजारी वसूलने भेजा तब राजा जी ने उसे बुरी तरह मारपीट कर भगा दिया। इससे क्रोधित होकर अंग्रेजों ने विशाल सेना के साथ आक्रमण कर पवई दुर्ग को तोड़ डाला।

अंग्रेजी हुकूमत काल में 1770 में जब भीषण अकाल के कारण बंगाल की जनता त्राहिमाम में थी और लोग दाने-दाने को तरस रहे थे , किसी के पास में खाने का कुछ नहीं बचा था, तब ऐसी स्थिति में राजा नारायण सिंह ने अपने अनाज के गोदामों को आम जनता के लिए खोल दिया था । राजा नारायण सिंह अपनी रियासत ही नहीं अन्य पड़ोसी रियासतों में भी युवाओं के आदर्श थे।

युवा उनकी एक आवाज पर मर मिटने को तैयार रहते थे।राजा नारायण सिंह भारत माता के ऐसे सपूत थे,जिन्होनें बिहार से सबसे पहले ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज बुलंद किया और अंग्रेजों को लगान देना बंद किया । साथ ही छापामार युद्ध मे निपुण राजा जी ने अंग्रेजों को कई मोर्चों पर परास्त भी किया। रेजीनॉल्ड हैंड जो कि शाहाबाद के कलेक्टर थे ने अपनी पुस्तक “अर्ली इंग्लिश एडमिनिस्ट्रेशन” में राजा नारायण सिंह के बारे में स्पष्ट लिखा कि राजा नारायण सिंह अंग्रेजी हुकूमत के सबसे बड़े दुश्मन हैं।

(लेखक-श्रीराम राय, शिक्षक हैं।)

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