एंटीबॉडी नहीं होती है स्थायी, टीके के बूस्टर डोज की होगी जरुरत

पटना(लाइव इंडिया न्यूज18 ब्यूरो)। कोरोना महामारी से सीख और आने वाली की चुनौतियाँ विषय पर आयोजित ऑनलाइन परिचर्चा में बोलती हुयीं डॉ नीलम मोहन, शिशु रोग विशेषज्ञ, मेदांता अस्पताल, गुड़गाँव ने जोर देकर कहा कि कोरोना से जंग जीतने में समाज की बड़ी भूमिका है. हमें खुद भी बचना है और लोगों को भी बचाना है. अपने आसपास के लोगों को सचेत करते रहना है. परिचर्चा का आयोजन कोविड रिस्पांस कोआर्डिनेशन कमिटी और हेल्थ वायर मीडिया द्वारा किया गया.

इस अवसर पर बोलती हुई उन्होंने कहा कि यह वायरस लगातार अपना रूप बदल रहा है. बीना टीका लगे आबादी में तो यह और तेजी से अपना रूप बदल लेता है.इसका हमें खास ख्याल रखना होगा. इसके लिए जरुरी है की हर व्यक्ति को टीका लगे. रोजाना 1 करोड़ लोगों का टीकाकरण होना चाहिए. टीकाकरण के रफ़्तार को तीन गुना तेज करने की जरुरत है. टीकाकरण गंभीर रूप से बीमार होने और मौत के आंकड़े को कम करने में मदद करती है. यह भी ध्यान रखने की जरूरत है कि एंटीबॉडी लम्बे समय तक हमारे शरीर में नहीं रहता है. इसलिए बूस्टर डोज की भी जरूरत है. इजरायल और इंग्लैंड में बूस्टर डोज पर ट्रायल हो रहा है.

डॉ मोहन ने कहा कि कोरोना की संभावित तीसरी लहर को ध्यान में रखते हुए बच्चों के प्रति सजग रहने की जरूरत है लेकिन डरने या घबराने की भी जरूरत नहीं है. पहली लहर में 3 प्रतिशत और दूसरी लहर में 12 प्रतिशत बच्चे संक्रमित हुए. लेकिन सिरोसर्वे से पता चलता है की 50-60 प्रतिशत बच्चों में कोरोना की एंटीबॉडी पायी गयी है. उन्होंने कहा की कोरोना ने बच्चों से उनका बचपन छीन लिया है. घरों में बंद करीब 75-80 प्रतिशत बच्चे मानसिक संताप के शिकार हो गए है. बच्चों में डर बैठ गया है. इसलिए बच्चों को मानसिक तौर पर मजबूत बनाने की जरुरत है. उन्होंने कहा की बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए उनके खान–पान, नींद, व्यायाम, और मानसिक स्वस्थ्य पर जोर देने की जरुरत है. बच्चों के माता पिता निश्चित रूप से टीका लगायें. उन्होंने कोरोना के इलाज के लिए जारी सरकारी दिशा निर्देशों का पालन करने पर जोर दिया. इससे इलाज में एकरूपता आएगी. गंभीर रूप से बीमार होने पर ऑक्सीजन और स्टेरॉयड का उचित उपयोग ही इसका इलाज है. एंटीबायोटिक, रेमडेसिवीर, इवेरमेक्टिन, जैसी दवाइयों की अब कोई जरूरत नहीं है. वायरस के जीनोम स्टडी पर जोर देते हुए कहा कि जहाँ वायरस का खतरनाक वैरिएंट हो वहीँ लॉक डाउन लगाना चाहिए.

डॉ अवधेश कुमार, विभागाध्यक्ष, मेडिसिन विभाग, आईजी ईएसआई, हॉस्पिटल दिल्ली ने कहा कि जनता और नीति निर्माता दोनों के सामूहिक भागीदारी की जरूरत है. हमेशा बचाव उपचार से ज्यादा प्रभावी रहा हैं. इसलिए हमें खुद भी जागरूक होना होगा और दूसरों को भी करना होगा. मेडिकल जमात तैयार है आगे की लड़ाई के लिए लेकिन हमें जनता का भी सहयोग चाहिए. कोविड अनुरूप आचरण का पालन बेहद जरुरी है. थोड़ी सी लापरवाही भारी पड़ सकती है। इसके सरकार और समाज दोनों को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी. तभी हम इस जंग को जीत पाएंगे.

चर्चा में भाग लेते हुए अजय झा, पैरवी ने कहा कि कोरोना एक जूनोटिक बीमारी है. यह जानवरों से इन्सान में फैला है. वैज्ञानिकों का अनुमान है की 7 करोड़ के करीब ऐसे जूनोज संक्रामक एजेंट पर्माफ्रॉस्ट अवस्था में हैं यानि कई सालों से बर्फ में दबे हुए हैं. हमें अभी इनमें से केवल एक प्रतिशत जीवों से ही वास्ता पड़ा है. जलवायु परिवर्तन ऐसी आपदाओं को और उभार सकता है. इस महामारी का यह एक स्पष्ट संकेत है कि प्रकृति की सामने कोई भी चीज बड़ी नहीं है. इसलिए हमें अपने आर्थिक विकास के केंद्र में प्रकृति को रखना ही होगा. अन्यथा ऐसी कई महामारी आगे भी झेलनी पड़ सकती है. उन्होंने कहा की कोरोना ने पूरी दुनिया में गरीबी, भुखमरी और गैरबराबरी को बढाया है. दुनिया में 13 करोड़ 2 लाख लोग महामारी की वजह से गरीबी के शिकार हो गए और 14 करोड़ 2 लाख से अधिक लोग भुखमरी के कगार पर पहुँचगए है. इस महामारी ने समुदाय के महत्व को भी प्रमुखता से रेखांकित किया है. हमें सामुदायिक मूल्यों को और मजबूत करने की जरूरत है.

अबू धाबी से चर्चा में शामिल डॉ आनंदमयी सिन्हा, स्त्री रोग विशेषज्ञ, ने कहा कि पिछले 18 महीनों से लगातार काम करते देश के डॉक्टर और अन्य परा मेडिकल स्टाफ अब थक चुके हैं. आने वाली खतरे को ध्यान में रखते हुए आवश्यक स्वास्थ्य सेवा को और अधिक मजबूत करने की जरूरत है. इसके लिए अधिक संख्या में मेडिकल और पारा मेडिकल स्टाफ की जरुरत पड़ेगी. उन्होंने पंचायत स्तर पर मॉडर्न क्लिनिक बनाने पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर पर इसके लिए जवाबदेही तय करनी होगी.

डॉ. किरण सिन्हा, जनरल प्रैक्टिशनर, लन्दन ने कहा की यह एक नया वायरस है. यह हमेशा बदल रहा है. इसी के हिसाब से हमारा ज्ञान भी बदल रहा है. हवा से फैलने वाले वायरस के प्रति ज्यादा सचेत रहने की जरूरत है. हमें छोटे-छोटे समूहों के साथ काम करने की जरूरत है. उन्होंने स्टेरॉयड के ज्यादा उपयोग पर सावधान करते हुए कहा की यह खतरनाक हो सकता है

परिचर्चा में लन्दन से शामिल डॉ प्रभा सिन्हा, स्त्री रोग विशेषज्ञ ने कहा कि भारत ही नहीं बल्कि इटली स्पेन सहित यूरोप, अमेरिका, अफ्रीका के कई देशों में अस्पताल से लेकर श्मशान तक लोगों की लंबी लाइन लगी हुई थी. नीदरलैंड्स में अभी लॉकडाउन खोलने से इन्फेक्शन रेट अचानक ढाई गुना से अधिक बढ़ गया. वायरस का कोई निश्चित इलाज नहीं है लेकिन इससे डरने की भी जरूरत नहीं है. दुनिया में कोरोना से ज्यादा एक्सीडेंट, आत्महत्या, मलेरिया, टीबी और एचआईवी जैसी बीमारियों से लोगों की मौत हो रही है. उन्होंने ने कहा की बच्चों और किशोर-किशोरियों की मनोदशा पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ा है. घरेलू हिंसा, माता-पिता की लड़ाई की घटना इस दौरान बढ़ी है. इसका भी गलत प्रभाव बंच्चों पर पड़ा है. सामाजिक रूप से अलग-थलग होने के बाद बच्चे सोशल स्किल, सीखने की कला भी भूलते जा रहे हैं. इसलिए बच्चों के लिए समाज को आगे आने की जरूरत है.

कार्यक्रम में आये डॉक्टरों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए प्रो.संजय भट्ट, समाज कार्य विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय ने कहा कि कोरोना की लड़ाई में हम सभी ने योगदान दिया है, लेकिन डॉक्टरों ने बड़ी जिम्मेदारी का निर्वहन किया है. उन्होंने कहा कि आज देश में विभिन्न साझेदारों के बीच एक समन्वय की कमी है. सभी स्टेकहोल्डरों के बीच तालमेल बैठने की जरुरत है. उन्होंने कहा की आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने इस महामारी में बड़ी भूमिका है. आज तक उनका वेतन तय नहीं हो पाया है. अभी तक मानदेय देते आ रहे है. उनको लगातार प्रशिक्षण और सुविधाओं की जरूरत है.