पटना(लाइव इंडिया न्यूज18 ब्यूरो)। पटना हाईकोर्ट ने दशहरा पर्व के छुट्टी के दौरान नवमी के दिन नगर निकाय चुनाव में ओबीसी-ईबीसी को आरक्षण देने के मामले पर 86 पन्ने का अपना फैसला दे दिया। कोर्ट ने कहा कि नगर पालिका के चुनाव में ओबीसी को दिया गया आरक्षण कानून के तहत गलत है।
आरक्षण देने के पूर्व सुप्रीम कोर्ट के 2010 में दिये गये फैसले को नजरअंदाज कर दिया गया। जबकि राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानने की बात कही थी। हाईकोर्ट ने राज्य चुनाव आयोग को आदेश दिया है कि ओबीसी के लिए आरक्षित सीटों को अनारक्षित सीट घोषित कर चुनाव की अधिसूचना जारी करें।
मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमर्ति संजय करोल तथा न्यायमर्ति एस कुमार की खंडपीठ ने एक साथ 17 मामले पर सुनवाई के बाद अपने आदेश में माना कि राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत बगैर ट्रिपल टेस्ट के ही ओबीसी को आरक्षण दे दिया। जबकि आरक्षण देने के पूर्व राजनीतिक रूप से पिछड़ेपन वाली जातियों को चिन्हित किया जाना था। सरकार ने ऐसा नहीं कर सीधे आरक्षण दे दिया।
कोर्ट ने ओबीसी को आरक्षण दिये जाने पर राज्य चुनाव आयोग के कार्यकलापों पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि राज्य सरकार के प्रभाव में आरक्षण दिया है। गौरतलब है कि गत 29 सितम्बर को कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई पूरी कर अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था, जिसे मंगलवार को सुनाया। हाईकोर्ट इससे पहले राज्य निर्वाचन आयोग को पहले चरण के चुनाव की तिथि आगे बढ़ाने की सलाह दे चुका था। दो चरणों में होने वाली नगर पालिका का पहले चरण का चुनाव 10 अक्टूबर जबकि दूसरे चरण का चुनाव आगामी 20 अक्टूबर को होना है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया था कि स्थानीय निकायों में ओबीसी के लिए आरक्षण की अनुमति तब तक नहीं दी जा सकती, जब तक कि राज्य सरकार वर्ष 2010 में सुप्रीम कोर्ट के दिये गये फैसले के अनुसार सबसे पहले तीन जांच की अर्हता पूरी नहीं कर लेती। तीन जांच के प्रावधानों के तहत ओबीसी के राजनीति पिछड़ापन पर आंकडे जुटाने के लिए एक विशेष आयोग का गठित करने और आयोग के सिफरिशों के अनुसार नगर निकायो में आरक्षण देना है। साथ ही यह भी सुनिश्चित करना है कि एससी/एसटी/ओबीसी के लिए आरक्षण की सीमा कुल उपलब्ध सीटों का पचास प्रतिशत की सीमा से अधिक नहीं हो।